हिंदी युवक भारती पाठ्य पुस्तक में साहित्यिक के साथ व्यावहारिक हिंदी का संतुलन–डॉ अलका

महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिती व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल (बालभारती), पुणे द्वारा निर्मित कक्षा बारहवीं की पाठ्यपुस्तक हिंदी युवकभारती छात्रों के बीच आ चुकी है । विषय- वैविध्यता की दृष्टि से युवकभारती एक बेहतरीन संकलन है । इसमें मध्यकालीन कवियों से लेकर समकालीन तक के रचनाकारों को स्थान दिया गया है । पुस्तक की खूबियों एवं सीमाओं को लेकर चर्चित लेखक एवं शिक्षाविद डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय ने महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिती मंडळ बालभारती, पुणे की हिंदी विशेषाधिकार डॉ. अलका पोतदार से खुलकर बातचीत की।


प्रस्तुत है विस्तृत बतकही के कुछ अंश –


नमस्कार अलका जी, हिंदी युवकभारती राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में वितरित हो चुकी है। छात्रों, अभिभावकों सहित शिक्षा जगत से सकारात्मक प्रतिक्रिया आ रही है। बधाई स्वीकार कीजिए।


इस गंभीर, रचनात्मक, रोजगारपरक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक पाठ्यपुस्तक निर्मिति का श्रेय किसे देना चाहेंगी?


नमस्कार सर , धन्यवाद ! पुस्तक निर्मिति का श्रेय किसी एक को नहीं दिया जा सकता । इसमें शासन, प्रशासन और शिक्षाविदों के बीच सामंजस्य आवश्यक है ।आज अगर इस आपाधापी में इतनी गुणवत्तापूर्ण पुस्तक हमारे बीच आ सकी तो इसका श्रेय शालेय शिक्षण मंत्री माननीया वर्षा ताई गायकवाड, बालभारती के संचालक श्री विवेक उत्तम गोसावी जी, पाठ्यपुस्तक निर्मिति की हिंदी समिति और अभ्यासगट के सदस्यों को देना चाहूँगी।


जी, पुस्तक निर्माण के संयोजन एवं संपादन का एक लंबा अनुभव आपके पास है । युवकभारती निर्मिति के दौरान कौन-कौन सी चुनौतियाँ आईं और आपने उनका किस प्रकार सामना किया ?


पाठ्यपुस्तक निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है सर। आप भी इसे जानते हैं क्योंकि आप भी हमारी समिति के सदस्य हैं। महाराष्ट्र के कोने-कोने से पढ़ाने वाले शिक्षकों एवं शिक्षाविदों का चयन करना, उनकी रचनात्मकता एवं रुचियों को जानना-समझना, आड़ाखड़ा तैयार करवाना, विद्यार्थियों की आयु के अनुसार पाठ्य-सामग्री का चयन, पठन, प्रूफ इत्यादि चुनौतियाँ होती हैं। यहाँ अत्यधिक सावधानी की जरूरत होती है । साथ ही नये विषयों का समावेश भी करना होता है। अगर हम सिर्फ कक्षा बारहवीं की चर्चा करेंगे तो हमारी बात अधूरी रहेगी। हमने कक्षा ग्यारहवीं में ही सुनिश्चित कर लिया था कि साहित्य के साथ-साथ हिंदी का व्यावहारिक रूप भी पाठ्यपुस्तक में रखना है । आप को इसका संतुलन दोनों कक्षाओं की पुस्तकों में दिखाई देगा। चुनौतियों का सामना करना हमारा काम है। सामूहिक सहयोग और सहकारिता से हम उत्तम कोटि की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण कर पाते हैं। 


हिंदी युवकभारती किन अर्थों में विशिष्ट है ? दूसरे राज्यों की पाठ्यपुस्तकों से यदि कोई इसकी तुलना करना चाहेगा तो उसे क्या खास मिलेगा यहाँ ?


सबसे पहले तो पाठ्यपुस्तक का आवरण ही संपूर्ण निर्मिति का दर्पण है । पहले पाठ्यपुस्तकों की निर्मिति आठ भाषाओँ में की जाती थी । पिछले दो सालों से दस भाषाओँ में हो रही है । इसका सूचकचिह्न मुख्य पृष्ठ पर मौजूद है । इसके अलावा हमारी पाठ्यपुस्तक छात्र केंद्रित है । अध्ययन सामग्री क्रमिक और श्रेणीबद्ध है । यहाँ आप को भाषाई कौशलों का क्रमिक विकास दिखेगा। इसके लिए आपको कक्षा नौवीं से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों का गहराई से अध्ययन करना पड़ेगा। साहित्यकारों का परिचय पाठ के प्रारंभ में उनके चित्र के साथ उपलब्ध है। अपने कलेवर में भी यह पाठ्यपुस्तक ख़ास है। कहने का मतलब यह है कि युवकभारती अपनी समग्रता में विशिष्ट है।


हिंदी को रोजगार से जोड़ना वक्त की माँग है। इस माँग को युवकभारती किस प्रकार पूरा करती है ? कृपया स्पष्ट कीजिए।


इसकी चर्चा मैंने पहले भी आपसे की है । कक्षा ग्यारहवीं में एक लेख है ‘हिंदी की उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं’ । इसे पढ़कर विद्यार्थियों का रुझान हिंदी की ओर अवश्य होगा । रेडियो जॉकी का आत्मसंघर्ष भी छात्रों को पढ़ने के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है । इनके अलावा व्यावहारिक हिंदी के अंतर्गत कक्षा बारहवीं में पल्लवन, फीचर लेखन, ब्लॉग लेखन, उद्घोषणा आदि पर केंद्रित पाठों का समावेश किया गया है। पुस्तक के अंत में पारिभाषिक शब्दावलियों की तालिका दी गई है। मुझे लगता है कि हिंदी के व्यापक विस्तार के लिए इसे रोजगार से जोड़ना ही होगा, साथ ही साहित्यिक हिंदी को भी बनाए रखना होगा। इसलिए युवकभारती में आपको व्यावहारिक हिंदी और साहित्यिक हिंदी का संतुलन मिलेगा।



आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी चकाचौंध की ओर आकर्षित हो रही है । कहीं न कहीं हमारे नैतिक मूल्यों का क्षरण भी तेजी हो रहा है । ऐसे में युवकभारती अपने भारतीय समाज को किन पाठ्य सामग्रियों के आधार पर आश्वस्त करती है ?


जी, मुझे लगता है कि यदि समाज में कोई भी विसंगति है तो कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था की भी जिम्मेदारी बनती है इन पर गहरा चिंतन-मनन करना। आज छात्रों में आक्रमकता अधिक है। धैर्य कम होता जा रहा है। इसलिए हमने ‘आदर्श बदला’ नामक कहानी का चयन किया ताकि बैजू बावरा का चरित्र विद्यार्थियों को गहराई तक प्रभावित कर सके। धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ पढ़कर हमारे बच्चों को युद्ध की त्रासदी का पता चलेगा । इस सामयिक विषय पर चर्चा करेंगे । हमने लीक से हटकर काम किया है। हमने माध्यमिक स्तर पर सूरदास, तुलसीदास और कबीरदास को लिया है ।आमतौर पर इन्हीं कवियों को पाठ्यक्रम में रखा जाता है पर हमने गुरुनानक और कवि वृन्द की रचनाओं को चुना ताकि उनकी रचनाओं में छिपे नैतिक मूल्यों को बच्चे अपने जीवन में उतार सकें ।पर्यावरण को लेकर हमारी संवेदनशीलता बरकरार रहनी चाहिए अतः डॉ. मुकेश गौतम की ‘पेड़ होने का अर्थ’ शीर्षक कविता ली। 'सुनो किशोरी' पत्र के माध्यम से युवाओं के द्वंद्व को उजागर किया है। इनके अलावा बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने के लिए ‘ओजोन विघटन का संकट’ और ‘प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव’ जैसी रचनाओं का चयन किया है।


महोदया, सीमित समय में सभी बिंदुओं पर चर्चा संभव नहीं । कुल मिलाकर एक उच्च गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तक हमारे बीच आ चुकी है जो विषय वैविध्य की दृष्टि से अद्भुत है। इसलिए इस साक्षत्कार का मैं अंतिम प्रश्न पूछूँगा। उन अध्यापक। अध्यापिकाओं से आप क्या कहना चाहेंगी जो युवकभारती का अध्यापन कार्य प्रारंभ कर रहे हैं?


जी सर, एक महत्त्वपूर्ण बात तो रह गयी। इस बार हमने कजरी को पाठ्यपुस्तक में स्थान दिया है क्योंकि हमारा मानना है कि लोकगीत हमारी परंपरा है। बोलियों की अपनी मिठास होती है । हाँ, अब आपके प्रश्न पर आते हैं। कुछ सामाजिक संगठनों ने ‘युवकभारती’ पर रचनात्मक वेबिनार का आयोजन किया था जो कई दिनों तक चला । महाराष्ट्र के दूर-दराज के अध्यापकों ने अपनी शंकाएँ रखी । हमने भी उनका तर्कयुक्त समाधान किया । मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी हो रही है कि हमारे शिक्षकगण सकारात्मक सोच के कारण बड़ी तेजी से उम्दा पाठ्य सामग्री तैयार करके सोशल मीडिया पर डाउनलोड कर रहे हैं जिनका लाभ सबको मिल रहा है। बालभारती की ओर से मैं अपने अध्यापकों को आश्वस्त करना चाहती हूँ कि लॉकडाउन के बाद शासन से अनुमति मिलते ही प्रशिक्षण कार्य प्रारंभ होगा।


आपने कक्षा बारहवीं की नई पाठ्यपुस्तक पर अपनी बेबाक राय हमारे समाचार पत्र चर्चा चक्र के पाठकों के सामने रखी। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !


जी, आभार !


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