स्वर्गीय पंडित सिद्धेश्वर अवस्थी जी अनेकों कलाओं की विभूति थे। नाटकों की लेखनी हो या फिर नाटकों का सेट तैयार करना हो अथवा गद्य नाटक को पद्य नाटक में, नौटंकी शैली में प्रस्तुत करना उनकी असीम योग्यता के पर्याय थे।
एक तरफ पत्रकारिता तो दूसरी तरफ मूर्तियों को हाथ से बनाना यहां तक की नारियल पर ब्लेड से त्रिनेत्र धारी भगवान शिव, ऋषि-मुनियों आदि की मूर्ति बनाना उनके हाथों की उंगलियों में अनोखी कला थी।
ऐसी विभिन्न विधाओं और कलाओं के धनी पंडित सिद्धेश्वर अवस्थी को इस नाट्य चौपाल में आए हुए कलाकारों ने काफी सराहा और उनके साथ बिताए हुए तथा उनके ज्ञान को घूर घूर सराहते हुए नमन किया।
लखनऊ से आए वरिष्ठ रंगकर्मी तथा सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक सूचना उत्तर प्रदेश अशोक बनर्जी ने कहा सिद्धेश्वर चाचा के विषय में कम समय में कहना संभव नहीं है क्योंकि वह अनेकों कलाओं के धनी थे। उन्होंने अपना सर्वस्व जीवन कला को समर्पित किया और आज यहां पर उपस्थित हम कलाकार लोग उनकी दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी के लोग हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इंद्रमोहन रोहतगी तथा सी डेनियल ने उन वरिष्ठ दस रंग कर्मियों को पंडित सिद्धेश्वर अवस्थी सम्मान से सम्मानित किया जिन्होंने अपना आजीवन कला सेवा के लिए समर्पित किया जिसमें सर्वश्री अशोक बनर्जी, विजय बनर्जी, महेश दुबे, सुरेश तिवारी, दीपक विश्वास, गोपाल मालवीय, तपन बनर्जी, वरेन सरकार, रमेश धवन तथा डॉ राजेंद्र वर्मा थे।साथ ही इस रंगमंच दिवस पर कानपुर में नाटक की विलुप्त होती इस विधा पर चिंता जताई गई युवा पीढ़ी में नाटकों में अभिनय के प्रति रुचिका का भाव होना तथा नाटकों के प्रदर्शन में अधिक खर्च पर चर्चा हुई इस नाट्य चौपाल में आए हुए वरिष्ठ कर्मियों ने रंगमंच को जारी रखने के लिए कई सुझावों रखें और भविष्य में इन सुझावों को राज्य और केंद्र सरकार को अवगत कराया जाएगा राखी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तथा अन्य नाट्य प्रशिक्षण संस्थानों से प्रशिक्षित कलाकारों को कम से कम 3 वर्ष नाटक और रंगमंच के लिए देने की अनिवार्यत की बात कही गई।
कार्यक्रम में आए हुए सभी अतिथियों कलाकारों का स्वागत बेबी शर्मा ने किया। रंगमंच को कानपुर मे जीवित रखने के लिए संस्था के महासचिव मोहित बरुआ के अथक प्रयासों की सराहना सभी ने की, साथ ही मुख्य अतिथि रोहतगी जी ने कार्यक्रमों में आर्थिक सहयोग के लिए बरुआ को आमंत्रित किया।
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