भाषा की पराधीनता से निकलना होगा- डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त
लखनऊ, मंगलवार 14सितम्बर 2021 (सूवि) भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष अष्टमी वर्षा ऋतु २०७८ आनन्द नाम संवत्सर। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और मातृभाषा‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन मंगलवार आज यशपाल सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में किया गया।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ0 सूर्यप्रसाद दीक्षित, विशिष्ट अतिथि डॉ0 कुमुद शर्मा, एवं डॉ0 हरीश कुमार शर्मा उपस्थित थे।
दीप प्रज्वलन माँ वीणापाणी की प्रतिमा पर माल्यार्पण/पुष्पार्पण के बाद प्रारम्भ हुए समारोह में वाणी वन्दना डॉ0 पूनम श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत की गयी।
आगन्तुकों का स्वागत करते हुए श्री पवन कुमार, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा- हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और मातृभाषा‘ विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी में पधारें सभी विद्वत्तजनों का स्वागत एवं अभिनन्दन।
उ0प्र0हिन्दी संस्थान अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से हिन्दी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के संवर्द्धन में निरन्तर लगा हुआ है। हिन्दी संस्थान एक ओर जहाँ साहित्यकारों का सम्मान कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है तो दूसरी ओर हिन्दी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित कर उनका प्रचार-प्रसार कर एवं पुस्तकों की बिक्री की व्यवस्था कर हिन्दी के उत्थान की दिशा में कृतसंकल्प है। यहाँ उल्लेखनीय है कि हिन्दी संस्थान द्वारा विभिन्न विषय की लगभग 700 पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है। त्रैमासिक पत्रिका साहित्य भारती एवं बच्चों की प्रिय पत्रिका बालवाणी द्वैमासिक प्रकाशित होती है, के माध्यम से नये रचनाकारों को प्रोत्साहित करने का कार्य भी करता है। इसी क्रम में हिन्दी संस्थान द्वारा विगत तीन वर्षों से युवा रचनाकारों के लिए निबन्ध, कहानी, कविता प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जा रहा है।
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डॉ0 सूर्यप्रसाद दीक्षित ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज राष्ट्रीय शिक्षानीति के क्षेत्र में व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, राष्ट्रीय स्तर पर ग्राम, जिले, प्रदेश स्तर पर सुझाव माँगे गये हैं। भाषा और बोली में अंतर होता है, भाषा के स्तर पर संकट यह है कि बहुत सी भाषाएँ लुप्त होने के निकट हैं। आज आवश्यकता है कि इन्हें बचाया कैसे जाये इसके उपाय करने होंगे। अनुवाद कार्य को वरीयता देनी होगी। ज्ञान के विषयों का अनुवाद करना होगा, तभी हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाया जा सकता है। भाषा को समय के साथ लेकर चलना होगा। शिक्षानीति को सबल बनाने के लिए विषय, विशेषज्ञों की आवश्यकता है। नई शिक्षानीति में यह भी ध्यान रखना होगा कि एक अच्छा मानव कैसे बनाया जाये, इसकी व्यवस्था हो। संवेदना व विचारों की उत्तेजना पैदा करके ही भाषा व साहित्य को बढ़ाया जा सकता है। नई शिक्षानीति में मातृभाषा पर विशेष बल दिया गया है। मौलिक चेतना व खोज हमें अपनी भाषा से ही आती है। कोरोना महामारी ने तकनीकी द्वारा शिक्षा को ग्रहण करने का नया माध्यम बना दिया। हिन्दी दिवस आत्मनिरीक्षण का दिवस है।
विशिष्ट अतिथि डॉ0 कुमुद शर्मा ने कहा-राष्ट्रीय शिक्षानीति जीवन का नया पाठ पढ़ाने में सक्षम होगी। मातृभाषा मानसिक विकास करती है। ज्ञान को सुलभ बनाने के लिए मातृभाषा में विषयों की जानकारी बच्चों को दिया जाना चाहिए। मातृभाषा आपको अपनी जड़ों, परम्पराओं, मिथकों से जोड़ती है। निर्मल वर्मा जी कहते हैं-भाषा एक सूत्र में बाँधने में सक्षम है। भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने में भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आज मातृभाषा को सीखने-समझने पर अधिक बल देना होगा। मातृभाषा मौलिक सर्जना में विचार करने की सामर्थ पैदा करती है। राष्ट्रीय शिक्षानीति में इस पर विशेष ध्यान रखा गया गया है कि भाषा व शिक्षा वैश्विक स्तर पर चुनौतियों का सामना कैसे कर सकें। राष्ट्रीय शिक्षानीति में आपको अपना भारत दिखायी देगा। राष्ट्रीय शिक्षानीति में भारतीय सांस्कृतिबोध को महत्वपूर्ण माना गया है। शिक्षा एक सर्वजनिक सेवा है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 हरीश कुमार शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा-नई शिक्षानीति में लोक भाषा को भी काफी महत्व दिया गया है। विश्व की भाषायी प्रतिस्पर्धा में हमें अन्य भाषाओं की जानकारी व ज्ञान रखना होगा तभी आगे बढ़ा जा सकता है। राष्ट्र को आगे बढ़ाने में हमारी मातृभाषा हिन्दी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। महात्मा गांधी जी ने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा को कसकर पकड़ना होगा। नई राष्ट्रीय शिक्षानीति में स्थानीय भाषाओं को विशेष महत्ता प्रदान की गयी है। इसमें शिक्षकों व संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण है। भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षण संस्थाओं को मजबूत बनाना होगा। भाषाओं को रोजगार का माध्यम बनाना होगा। विभिन्न भाषाओं के मध्य समन्वय की आवश्यकता है।अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारत को व मातृभाषा को समृद्ध करने हेतु मौलिक चिन्तन पर विशेष बल देते हैं। भारतेन्दु जी ने भाषा के प्रति होने वाले षडयन्त्र के प्रति प्रतिवाद किया। वे स्वदेशी चेतना के पक्षधर थे। वे कहते थे अपना सब कुछ न्योछावार किये बिना हम एकजुट नहीं कर सकते हैं। निर्मल वर्मा जी कहते है-भाषा से कटने का अर्थ है हम अपनी परम्पराओं, संस्कृतियों से कट जाना है। आज की राष्ट्रीय शिक्षानीति भारत को आगे ले जाने में सक्षम है। सितम्बर माह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें महान व बड़े रचनाकारों, साहित्यकारों का जन्म हुआ। मातृभाषा विचारों के संवाहक में सहयोगी है। मातृभाषा में ही मौलिक चिन्तन सम्भव है। आज हमारे आचार-व्यवहार में परम्पराओं की गंध कम होती जा रही है। हमें अपनी भाषा में गर्व का भाव पैदा करना होगा। भाषा में स्वाभिमान परिलक्षित होना चाहिए। हमें भाषा की पराधीनता से बाहर निकलना होगा। मातृभाषा के महत्व को हमारे मनीषियों ने अच्छे ढंग से समझा था। भाषा के बिना जन-जागृति नहीं हो सकती।
डॉ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्यवतजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया। इस संगोष्ठी में संस्थान के फेसबुक पेज पर लाइव पर अनेक हिन्दी प्रेमियों ने प्रतिभाग किया।
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