- विश्व स्तनपान सप्ताह मना रहा है मोहन चिल्ड्रन हॉस्पिटल
- शिशु को स्तनपान कराने की सार्थकता को बताया डॉ चौरसिया ने
- स्तनपान से शिशु का कुपोषण और माताओं में स्तन कैंसर की संभावना कम होती है
- बोतल व डिब्बे का दूध नौनिहालों में डायरिया का मुख्य कारण
- ऐसे 5 वर्ष के बच्चों में सबसे अधिक मृत्यु दर होती है।
कानपुर, सोमवार 01अगस्त 2022 श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी, वर्षा ऋतु २०७९ राक्षस नाम संवत्सर। आज भारतीय बाल रोग अकादमी एवं मोहन बाल चिकित्सालय के संयुक्त तत्वावधान में 1 अगस्त से 7 अगस्त तक चलने वाले "विश्व स्तनपान सप्ताह" का शुभारंभ मोहन चिल्ड्रन हॉस्पिटल नया गंज में डॉक्टर आर. एन. चौरसिया द्वारा किया गया।
शिशु को स्तन पान कराना एक परम महत्वपूर्ण कड़ी है इससे शिशु मृत्यु दर में कमी, कुपोषण हटाना, मातृ शिशु सुरक्षा, संक्रमक रोगों में कमी, लिंग भेद समाप्त करना, वातावरण में शुद्धि, सर्व शिक्षा का अधिकार आदि प्राप्त किये जाने में सहायक है वहीं पर शिशु एवं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी संतुलित रहता है।
इस सन्दर्भ में सभी सामाजिक कार्यकर्ता, परिवार के सदस्य स्वयंसेवी संस्थायें, चिकित्सा सम्बन्धी कर्मचारी शिक्षकगण तथा चिकित्सकों से पूर्ण सहयाग की अपेक्षा की गई है । परन्तु कार्यकारी माताओं द्वारा अपने शिशु को 6 माह तक स्तनपान कराने में कतिपय अवरोध का सामना करना पड़ता है। यद्यपि प्रशासन द्वारा "मातृत्व अवकाश" आदि की सुविधा उपलब्ध है इस संगोष्ठी में माताओं, तथा चिकित्सालय अभिभावकों, सामाजिक कार्य के परिवारिकों को सम्बोधित करते हुए जागरूक किया गया।
सर्वप्रथम मोहन बाल चिकित्सालय के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ० आर० एन० चौरसिया ने संगोष्ठी में भाग ले रहे सभी माता पिता व चिकित्सकों का स्वागत करते हुए कहा कहा कि स्वस्थ शिशु व स्वस्थ माँ के लिये स्तनपान नितान्त आवश्यक है। सफल स्तनपान से जिस प्रकार शिशु स्वस्थ रहता है, उसी प्रकार से माँ का स्वास्थ्य सुधरता है और जच्चा बच्चा दोनों को स्वास्थ्य लाभ होता है। "माँ का दूध ही नवजात शिशु का सर्वोच्चतम आहार है" जो कि शिशु के विकास की आवश्यकतानुसार प्रकृति ने उसकी माँ को दिया है। माँ के दूध में सभी पौष्टिक तत्व सही अनुपात तापक्रम और गुणवत्ता से पूर्ण है।डॉ० चौरसिया ने बताया यह मनुष्य के जीवन का पहला टीकाकरण है क्योंकि माँ के स्तन से पहले 3 दिन जो दूध मिलता है, वह थोड़ा गाढ़ा और पीला होता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। यह कोलोस्ट्रम पौष्टिक होने के अलावा बीमारियों से बचाने की अपार क्षमता रखता है, यह अमृत है जीवन में एक ही बार उपलब्ध होता है, अतः इसे फेकें नहीं नवजात शिशु को अवश्य पिलायें।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञ तथा आई०ए०पी० के पूर्व प्रादेशिक अध्यक्ष डा0 एम0एम0 मैथानी ने कहा गत 26 वर्षों से प्रतिवर्ष "विश्व स्तनपान सप्ताह" के आयोजन द्वारा स्तनपान शिशु का अधिकार, नारी का सशक्तिकरण, एक शिक्षा, एक स्वर्णिम अवसर, जीवन की अभिलाषा सर्वोत्तम पूंजी निवेश, एक बड़ी आर्थिक उपलब्धि "कुदरत की देन अमूल्य देन" आदि संज्ञायों से जाना जाता है। स्वस्थ शिशु एवं स्वस्थ माँ के लिया स्तनपान अभियान को सब मिलकर सफल बनायेंगे ताकि शिशु का सम्पूर्ण विकास हो, स्वस्थ हो तथा मां भी स्वस्थ रहे।
मां का दूध अनमोल है और निःशुल्क है हर समय शुद्ध ताजा है व उसमें कोई मिलावट नहीं हो सकती है।
भारतीय बालरोग अकादमी, कानपुर के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ डा० अनुराग भारती ने कहा कि स्तनपान करने वाले बच्चे मानसिक रूप से भी ज्यादा विकसित होते हैं और प्रौढ़ अवस्था में डायबिटीज, दिल की बीमारियों एवं कैंसर जैसे घातक रोगों से भी बचे रहते हैं। स्तनपान से माँ की छाती व बच्चेदानी में कैंसर होने की सम्भावना कम रहती है। हमारी संस्था ने शहर के हर कोने में समाज के हर वर्ग में, हर धर्म में, हर आयु वर्ग में प्रचार करने की कोशिश की है।
नगर की वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ डा० सविता रस्तोगी, संयोजक भारतीय बाल रोग अकादमी ने सम्बोधित करते हुए बताया कि शिशु को जन्म के पहले घण्टे के अन्दर ही स्तनपान शुरू कर देना चाहिए चाहे उसका जन्म आपरेशन से ही क्यों न हुआ हो।
स्तनपान का लाभ आर्थिक रूप से सारे परिवार को होता ही है लेकिन इसका विशेष लाभ मां और शिशु दोनों को होता है। कार्यकारी मातायें, नवजात शिशु को स्तनपान कराने हेतु नियमतः 3 माह का "मातृत्व अवकाश लें तथा पिता को भी इस अवधि में अवकाश देय है। मातृत्व अवकाश के तीन माह पश्चात् मां का दूध एकत्रित कर समय पर शिशुओं को दिया जा सकता है। मां का दूध सामान्य तापक्रम में आठ घंटे तक सुरक्षित रहता है अथवा महिलाओं के कार्यस्थल पर स्तनपान कराये जाने की सुविधा प्रदान की जा सकती है। स्तनपान कराने से माँ का शरीर पूर्ववत् सुन्दर हो जाता है तथा कैंसर होने की सम्भावना नहीं रहती।
स्तनपान कराये जाने वाले बेबी का युवा होने पर सामाजिक दुर्गुण व अपराध वृत्ति नहीं होती है। बोतल / डिब्बे का दूध पीने वाले शिशु कम बुद्धि वाले तथा बार - आर डायरिया, खाँसी, एलर्जी, सांस की बीमारी, कान का बहना, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर आदि रोगों से पीड़ित रहते हैं।
बालरोग विशेषज्ञों ने अवगत कराया कि बोतल व डिब्बे का दूध नौनिहालों में डायरिया का मुख्य कारण है जिस कारण 5 वर्ष के बच्चों में सबसे अधिक मृत्यु होती है। अतः डिब्बे का दूध पिलाने की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए भारतीय बालरोग अकादमी की पहल पर एक कानून बनाया है कि शिशु दुग्ध जैसा पदार्थ बोतल और शिशु के खाने वाले पदार्थ पर नियंत्रण हेतु है जिसे उत्पादन नियंत्रण आपूर्ति और वितरण कानून (1992) कहते हैं। इसके अन्तर्गत बोतल डिब्बे के प्रचार-प्रसार आदि पर पूर्णतः प्रतिबन्ध है।
भारतीय बालरोग अकादमी, कानपुर के सचिव डा0 सुबोध बाजपेई ने माताओं को बताया कि प्रसव के तुरंत बाद (विशेषकर एक घंटे के अन्दर ही) शिशु को स्तनपान शुरू करा देना चाहिए इसके लिए माँ को शारीरिक व भावनात्मक रूप से गर्भावस्था के दौरान ही तैयार करना पड़ता है। शिशु को जन्म के बाद मीठा पानी, शहद, बोतल का दूध या घुट्टी आदि बिल्कुल न दें, इनसे बीमारी लगने का खतरा रहता है।
यदि आपका शिशु दूध पीने के बाद दो-तीन घंटे तक नहीं रोता उसका वजन सामान्य रूप से बढ़ रहा है और दिन में छह बार से अधिक पेशाब कर रहा हो तो चिन्ता की कोई बात नहीं, अगर बच्चा दिन और रात में आराम से खूब सोता है उसकी शौच सामानय है और बढ़ता हुआ दिखता है तो समझ लीजिए उसे आपके स्तन से भरपेट 'दूध मिल रहा है।
माताओं को जागरूक करने के लिए प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम किया गया जिसमें माताओं ने प्रश्नों का उत्तर दिया तथा उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। अंत में डॉ० जे०के० कोहली ने माँ का दूध पर धार्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा कि "एक इन्सान माँ के दूध का कर्जदार होता है।
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