कुम्भ की तुलना मरकज से करना हास्यास्पद है -अनुराग प्रताप सिंह

रायबरेली, गुरुवार 22अप्रैल 2021 चैत्र मास शुक्ल पक्ष दसवीं २०७८ आनन्द नाम संवत्सर। कुछ सेकुलर विद्वान जो हरिद्वार के महाकुंभ की तुलना जमातियों के मरकज से कर रहे हैं, जोकि पूरी तरह गलत है अलग-अलग धर्मों के अलग अलग सिद्धांत होते हैं हिंदू धर्म को अन्य धर्म से न जोड़ा जाए यह कहते हुए अनुराग सिंह ने कहा कि भोजन में थूक लगाकर सब्जियों पर पेशाब छिड़ककर, नाबदान में भोज्य पदार्थों को धोकर कोरोना फैलाना मजबूरी नहीं हो सकती। कोरोना का जहर फैलाने में मरकज की भूमिका अक्षम्य है। 

इधर कुम्भ में आने वाले प्रत्येक हिन्दू सन्त, महात्मा या सामान्य नागरिकों ने पूर्णतः जिम्मेदारी का परिचय दिया है ! आप जानते हैं कि मेले में आने से पहले लोगों के पास कोरोना के आरटी पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट होनी चाहिए, जो कि 72 घंटे से अधिक पुरानी न हो। 

यही कारण है कि इस वर्ष भीड़ पिछले वर्षों की तुलना में बहुत कम है, लेकिन लिबरल-वामपंथी और कट्टरपंथियों का समूह गलत सूचनाओं के आधार पर इसे कोरोना नियमों का उल्लंघन साबित करते हुए अपना प्रोपेगेंडा सेट करने में लगा है। मरकज के जमाती एक हाल में जुटे थे और पूरे षड्यंत्र के तहत कोरोना बम बनके फूटे थे जबकि कुंभ के 16 घाट हैं ! यह हरिद्वार से लेकर नीलकंठ तक विस्तृत है और लोग सरकारी निर्देशन में निर्धारित सही जगह पर स्नान कर रहे हैं और इसके लिए समयसीमा निर्धारित की गई है ! कुम्भ का आयोजन इस वर्ष हुआ है जबकि पिछले वर्ष का वो भयावह दिन याद होना चाहिए जब मौलाना साद व अन्य जमातियों ने देश को अंधकार में झोंक दिया था ! एक वर्ष हो गए,  लाखों प्राण जाने के बाद भी देश अब तक मुक्त नहीं हो पाया है इन थूक चट्टो के प्रकोप से। ऐसी नीच हरकत कोई हिन्दू सन्त महात्मा कर ही नहीं सकता।

उत्तराखंड सरकार के कुंभ मेले के आयोजन के सख्त नियमों के पालन के साथ अपने धार्मिक कार्यों का सम्पादन कर रहे हैं! नागरिकों की सुरक्षा के लिए जो कड़े नियम बनाए गए हैं उनका पालन हम सुनिश्चित कर रहे हैं। 

विश्व हिन्दू न्यायपीठ के परमाध्यक्ष अनुराग प्रताप सिंह ने प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा कि कुम्भ स्थगित भी नहीं किया जा सकता। जिस तरह सूर्य की गति को स्थगित नहीं किया जा सकता, प्रकृति के नियमों को टाला नहीं जा सकता उसी तरह से बारह वर्षों के बाद लगने वाले महाकुंभ को स्थगित नहीं किया जा सकता। यदि बंगाल का विधानसभा चुनाव स्थगित नहीं हुआ, रैलियों को टाला नहीं गया, उत्तर प्रदेश का पंचायत चुनाव तय समय सीमा में में कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई तो कुम्भ को स्थगित करना, टालना या समापन की बात करना, माना जायेगा कि यह सत्ता की चाटुकारिता का प्रतिफल है। लेकिन याद रखे कुछ लोगों का निर्णय समस्त सन्त समाज का निर्णय नहीं हो सकता। 

हम लौकिक नहीं बल्कि पारलौकिक सरकार पर भरोसा रखने वाले संत हैं और हमारी सरकार कभी भंग नहीं होती। अनादिकाल से चल रही परम्परा को राजनैतिक हाथों की कठपुतली बनके रोक देना उचित नहीं है। महाकुम्भ किसी भी दशा में स्थगित नहीं किया जा सकता क्योंकि श्रद्धालु पूर्णतः कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं। 

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