गीत

डॉ राजेश तिवारी 'विरल' हिन्दी विभाग, डी.ए-वी. काॅलेज,कानपुर


कानपुर, 06-12-2019



               तुम गीत की लघु अन्तरा अरु गान हो।
               संगीत की सरगम तुम्हीं, तुम तान हो।।



सौन्दर्य की वह राशि संचित हो कहीं, 
उस राशि की जीवन्त प्रतिमा हो वही।
मधुरिम मुखर तुम नवल कलिका सी खिली,
मधुमय पराग सुहाग लतिका सी पली।
तुम ही सुमन की वह मधुर मुस्कान हो,
तुम गीत की लघु अन्तरा अरु गान हो।
संगीत की सरगम तुम्हीं, तुम तान हो।।



              तुम ही विभा, तुम ही प्रभा,तुम मुक्ति हो, 
              तुम ही जगत की गहनतम अनुरक्ति हो।
              तुम वह महाचिति हो जगत की वह स्वधा,
              तुम नित नवल रहती कलामय सर्वदा।
              तुम विगत तम की उस निशा की शान हो,
              तुम गीत की लघु अन्तरा अरु गान हो।
              संगीत की सरगम तुम्हीं, तुम तान हो।।



तुम सजल रचना सुघड़ हो इस धरा की,
तुम कहीं से अवतरित हो अप्सरा-सी।
कृति मनोहर हो कोई रचना अलौकिक,
रूप धर कर आ गई क्या पंच भौतिक।
उस नियन्ता की रचित सु-विहान हो, 
तुम गीत की लघु अन्तरा अरु गान  हो।
संगीत की सरगम तुम्हीं, तुम तान हो।।


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