छठ महापर्व को उत्तर भारत के लोगों ने भी अपनाया

कानपुर, शनिवार कार्तिक शुक्ला सप्तमी 2077 विक्रम संवत। सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है और इस मास की हर तिथि पर बड़े-बड़े रहस्य छिपे हुए हैं। कार्तिक माह में पूरे महीने गंगा स्नान और तुलसी की आरती करने का आध्यात्मिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी है। 

मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के अस्ताचलगामी सूर्य और सप्तमी को उदयीमान सूर्य के मध्य वेला में वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। 

इस कारण यह तिथि महत्वपूर्ण है और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा होने का रहस्य, गायत्री का मूल संबंध सविता देवता अर्थात सूर्य देव से है। सूर्य का उदय होना, अस्त होना और फिर उदय होना यहाँ मृत्युलोक पर जन्म मृत्यु और पुनर्जन्म की आवृत्ति को दर्शाता है। 

कोरोना काल में भी यह सूर्य का कठिन व्रत छठ महापर्व भक्तों द्वारा अपने घरों में पूरी श्रद्धा और विधि विधान से किया गया। जहां पर घाटों पर जाकर पूजा अर्चना करने की विवशता थी वहां घरों में ही भक्तों ने जल भरे टब में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ देकर छठ पूजा के विधान को पूर्ण किया। 

हालांकि यह व्रत भारत के पूर्वोत्तर राज्यों मे प्रमुख रूप से मनाया जाता है विशेषकर छठ पूजा बिहार का श्रेष्ठतम ऊर्जावान और फलदाई व्रत है। इसकी महत्ता को देखते हुए अब उत्तर भारत के प्रतिष्ठित और श्रद्धालु लोग छठ के व्रत को अपनाकर सूर्य के कठिन व्रत की परंपरा मनाने लगे हैं। 

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