मुंशी प्रेम चंद द्वारा लिखित उपन्यास रंग भूमि का मंचन

कानपुर, शनिवार 25सितम्बर 2021 आश्विन मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तदुपरि पंचमी शरद ऋतु २०७८ आनन्द नाम संवत्सर। आज जनपद के मर्चेंट्स चेम्बर सिविल लाइंस में तक्षशिला नाट्य एवम सांस्कृतिक संस्था ने संस्कृति मंत्रालय दिल्ली, भारत सरकार के सहयोग से एक 40 दिवसीय प्रस्तुति परक रंगमंच कार्यशाला के फल स्वरुप आयोजन किया गया।

इसके अंतर्गत नवांगतुक कलाकारों को प्रशिक्षण एवम नाटक की तकनीकी जानकारी दी गयी। प्रशिक्षण के उपरांत उन्ही नवांगतुक कलाकारों द्वारा ही अभिनीति मंचन के लिए प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेम चंद द्वारा लिखित उपन्यास रंग भूमि पर आधारित नाटक को मंचन हेतु तैयार कराया।

जिसकी प्रथम प्रस्तुति 25 मार्च को लाजपत भवन प्रेक्षागृह कानपुर में आयोजित की जा चुकी है। दूसरी प्रस्तुति कोरोना की दूसरी विनाशकारी लहर के कारण विलंबित हो गयी थी।अब उसी आयोजन के अगले चरण में रंग भूमि के द्वीतीय मंचन की यह प्रस्तुति की गई। 

प्रेमचंद की इस कालजयी रचना में नौकरशाही और पूंजीवाद का विषैला मिश्रण और ग्रामीणों में नशा चोरी स्त्री दुर्दशा और गरीबी का जीवित चित्रण किया गया है। भारत की राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के विरुद्ध जन संघर्ष को चित्रित करते हुए अभिनीति किया गया है। 

नाटक की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार है एक जन्मांध सूरदास जो बीघों ज़मीन का मालिक होने पर भी गांव के लोगों के इस्तेमाल और जानवरों के उपयोग हेतु ज़मीन को यूं ही खाली पड़ा रहने देता है और अपना जीवन यापन भीख मांग कर एक वास्तविक "बैरागी" की तरह करता है और एक अनाथ बालक की परवरिश भी करने को संकल्पित रहता है।

उसकी इसी ज़मीन पर एक दिन एक व्यवसायी जॉन सेवक की नज़र पड़ती है जो उस जमीन पर अपने बेटे के लिए एक सिगरेट का कारखाना लगाना चाहता है।

जब जॉन सेवक को पता चलता है कि सूरदास को ज़मीन से कोई भी आर्थिक लाभ नही होता है तो पहले स्वम् उसे लालच देता है फिर एक क्षेत्रीय राजा को लगाता है उसे फसाने को लेकिन उनके तमाम लालच देने पर भी सूरदास वो ज़मीन उन्हें देने को तैयार नही होता है। इस पर फिर शुरू होती है नौकरशाही (हाकिम) न्याय शाही (अधिग्रण का आदेश देने वाले) और कार्यशाही (राजा) की साजिशें

और फिर सूरदास की ज़मीन असल कीमत से बहुत कम कीमत पर ज़मीन हथिया लेने की साजिश का आदेश पारित करा लेते है बल्कि एक और आदेश से उस जमीन के आसपास की बस्ती को भी खाली कराकर हड़पने की साजिश की जाती है।

जब सूरदास और गाँव के लोग आपत्ति करतें हैं तो सूरदास की गोली मार कर हत्या करा देते है। सूरदास की जनघ्य हत्या को गांववाले बर्दास्त नही करते और अन्याय के खिलाफ जनमानस में जन्म लेता है एक विद्रोह और विद्रोह हिंसा में परिवर्तित हो जाता है और उसका परिणाम होता। उन सभी मक्कार साजिश कर्ताओं का वध। 

मंचन के मुख्य पात्र सूरदास (राम गोपाल) ने बहुत ही जीवंत और भावपूर्ण अभिनय किया,जो दर्शकों के आंसू ला देता है सभी नवांगतुक कलाकारों ने भी दिल को छू लेने वाला अभिनय किया खास कर दो छोटे बच्चों ने तो मन मोह लिया अपने अभिनय से इस मंचन को दिशा और निर्देश अर्थात निर्देशित किया है कानपुर के वरिष्ठतम नाटक कार डॉ राजेन्द्र वर्मा जी ने,,और उनके शह निर्देशक रहे श्याम मनोहर जी प्रकाश व्यवस्था की कृष्णा सकसेना जी ने और आयोजन किया सुरेश आर्य जी ने। 

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